हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
मेरी ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर इसी वस्ती मेरे हम सफर मुझे क़तरा क़तरा पीला ज़हर जो करे असर बरी देर तक।
किसी फ़कीर की झोली मैं कुछ सिक्के डाले तो ये अहसास हुआ महंगाई के इस दौर मैं दुआएं आज भी सस्ती हैं।
में ज़िन्दगी से पूछा तू इ तनी मुश्किल क्यों है ज़िन्दगी ने कहा, दुनिया आसान चीज़ों की क़दर नहीं करती।
है और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे कहते है की ग़ालिब का है अंदाज-ए-बयां और।
न वो आ सके , न हम कभी जा सके , न दर्द दिल का किसीको सुना सके बस खामोश बैठे है उसकी यादों में , न उसने याद किया न हम उसे भुला सके
उनकी एक नजर को तरसते रहेंगे, ये आंसू हर बार बरसते रहेंगे, कभी बीते थे कुछ पल उनके साथ, बस यही सोच कर हसते रहेंगे।