इश्क़ की तलाश में क्यों निकलते हो तुम, इश्क़ खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है। 

तुझ से बिछड़ कर कब ये हुआ कि मर गए, तेरे दिन भी गुजर गए और मेरे दिन भी गुजर गए. 

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी  नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था  वो अदालत भी तुम्हारी थी.

सालों बाद मिले वो गले लगाकर रोने लगे, जाते वक्त जिसने कहा था तुम्हारे जैसे हज़ार मिलेंगे. 

हम समझदार भी इतने हैं के उनका झूठ पकड़ लेते हैं और उनके दीवाने भी इतने  के फिर भी  यकीन कर लेते है

मैंने मौत को देखा तो नहीं,  पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।  कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं, जीना ही छोड़ देता हैं।।

झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख्याल था दबी दबी हँसी में इक, हसीन सा गुलाल था मै सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो न जाने क्यूं लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो 

कोई वादा नही किया लेकिन क्यों तेरा इंतज़ार रहता है बेवजह जब क़रार मिल जाए दिल बड़ा बेकरार रहता है 

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,   जैसे हम को पुकारता है कोई। हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं,  वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं 

दबी-दबी साँसों में सुना था मैंने बोले बिना मेरा नाम आया पलकें झुकी और उठने लगीं तो हौले से उसका सलाम आया