वो हर बार मुझे छोड़ के चले जाते हैं तन्हा, मैं मज़बूत बहुत हूँ लेकिन कोई पत्थर तो नहीं हूँ।
मैं जो हूँ मुझे रहने दे हवा के जैसे बहने दे, तन्हा सा मुसाफिर हूँ मुझे तन्हा ही तू रहने दे।
तन्हाई में चलते चलते अब पैर लडखडा रहे हैं, कभी साथ चलता था कोई, अब अकेले चलें जा रहे हैं।
– कैसे गुजरती है मेरी हर एक शाम तुम्हारे बगैर, अगर तुम देख लेते तो कभी तन्हा न छोड़ते मुझे।
अकेले ही सहना अकेले ही रहना होता है, अकेलेपन का हर एक आँसू, अकेले ही पीना होता है।
तू उदास मत हुआ कर इन हजारों के बीच, आख़िर चांद भी अकेला रहता हैं सितारों के बीच।
छोड़ दिया ना अकेला मुझे मेरे हाल पे, क्या झूठे थे वो कसमें वो वादे, असल में क्या थे तुम्हारे इरादे।
जहां महफ़िल सजी हो वह मेला होता है, जिसका दिल टूटा हो, वो तन्हा,अकेला होता है।
आज तब अहसास हुआ मुझे अकेलेपन का, जब तेरे होते हुए भी किसी और ने तसल्ली दी मुझे।
गुजर जाती है ज़िन्दगी, यूँ ही गुजर रहे हैं पल, कोई हमसफ़र मिले न मिले, तू अकेला ही चल।