ख़ुशियाँ तो उँगलियों पे कई बार गिन
चुके पर ग़म हैं बेशुमार, ग़मों का हिसाब क्या
रोज़ खाली हाथ जब घर लौट कर जाता हूँ
मैं मुस्करा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं.