“जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!”
मेरे यार ज़रा गौर से देख में हारा तो नहीं
मेरा सर भी तो पड़ा है मेरी दस्तार के साथ
ये घनी छाँव भी साज़िश है किसी दुश्मन की
मुझे मालूम था तुम लोग ठहर जाओगे
तुमसे टूटेगा न इस शब् की सियाही का तिलिस्म
मैंने पहले ही कहा था कि जला लो मुझको
किसको बताएं कब से हम ज़िन्दगी के
राही फूलों की आरज़ू में काँटों पे चल रहे हैं
गुरूर हुस्न पे इतना ही कर बुरा न लगे
तू सिर्फ़ हुस्न की देवी लगे खुदा न लगे
पढ़े जो गौर से तारीख के वरक हमने,
आंधिओं में भी जलते हुए चराग मिले।