ज़िन्दगी यूँ ही बहुत कम है, मोहब्बत के लिए,
फिर एक दूसरे से रूठकर वक़्त गँवाने की जरूरत क्या है।
एक उमर बीत चली है
तुझे चाहते हुए,
तू आज भी बेखबर है
कल की तरह।
फासले रख के क्या हासिल कर लिया तूने…
रहती तो आज भी तू मेरे दिल में ही है
बिछड़ के तुझसे किसी दूसरे पर मरना है
,
ये तजुर्बा भी इसी जिन्दगी में करना है।
तुम्हारा साथ छूटने के बाद,
बड़े हल्के से पकड़ता हूं
अब मै सबकुछ
मत देख वो शख्स गुनहगार है कितना,
ये देख की तेरे साथ वफादार है कितना।
बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम
वो सुना रहे थे अपनी वफाओ के किस्से
हम पर नज़र पड़ी तो खामोश हो गए.
तमाम उम्र गुजार देगें हम राह-ए-इंतजार में,
झूठा ही सही पर आने का एक वादा तो कर दे।
अलफ़ाज़ तो बहुत हैं
मोहब्बत
बयान करने के लिए,
पर जो
खामोशी
नहीं समझ सकते वो अलफ़ाज़ क्या समझेगेे